About Shodashi

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दिव्यौघैर्मनुजौघ-सिद्ध-निवहैः सारूप्य-मुक्तिं गतैः ।

This classification highlights her benevolent and nurturing factors, contrasting While using the fierce and moderate-fierce natured goddesses within the group.

चक्रेशी च पुराम्बिका विजयते यत्र त्रिकोणे मुदा

कन्दर्पे शान्तदर्पे त्रिनयननयनज्योतिषा देववृन्दैः

When Lord Shiva heard with regard to the demise of his wife, he couldn’t Management his anger, and he beheaded Sati’s father. However, when his anger was assuaged, he revived Daksha’s everyday living and bestowed him using a goat’s head.

Working day: On any month, eighth day from the fortnight, complete moon day and ninth working day in the fortnight are stated to become fantastic days. Fridays are also equally great times.

षोडशी महाविद्या प्रत्येक प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु इनकी साधना अति उत्तम मानी जाती हैं। त्रिपुर सुंदरी महाविद्या संपत्ति, समृद्धि दात्री, “श्री शक्ति” के नाम से भी जानी जाती है। इन्हीं देवी की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवीं महाविद्या धन, सुख तथा समृद्धि की देवी महालक्ष्मी है। षोडशी देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध अलौकिक शक्तियों से हैं जोकि समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तियों की देवी अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। तंत्रो में click here उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन इत्यादि जादुई शक्ति षोडशी देवी की कृपा के बिना पूर्ण नहीं होती हैं।- षोडशी महाविद्या

देवीभिर्हृदयादिभिश्च परितो विन्दुं सदाऽऽनन्ददं

हन्यादामूलमस्मत्कलुषभरमुमा भुक्तिमुक्तिप्रदात्री ॥१३॥

श्रीं‍मन्त्रार्थस्वरूपा श्रितजनदुरितध्वान्तहन्त्री शरण्या

यत्र श्रीत्रिपुर-मालिनी विजयते नित्यं निगर्भा स्तुता

Cultural gatherings like people dances, tunes performances, and plays will also be integral, serving as being a medium to impart classic stories and values, In particular towards the youthful generations.

The worship of Goddess Lalita is intricately linked Using the pursuit of both equally worldly pleasures and spiritual emancipation.

साम्राज्ञी सा मदीया मदगजगमना दीर्घमायुस्तनोतु ॥४॥

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